Wednesday 8 June 2011

महिला सशक्तिकरण का छलावा

नारी के मान-सम्मान कि रक्षा की जानी चाहिए ,सुरक्षा के अंतर्गत उन्हें समान अधिकार और उनके लिए कायदे कानून बनाने चाहिए, न जाने कितने नियम और कानून बनते आ रहे है, पर फिर भी इस समाज में नारी आज भी अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं कर रही है. राह पर चलते हुए, स्कूल कॉलेज, कार्यालयों तथा अपने घर में भी असुरक्षा का भाव मन में सदैव उमड़ता रहता है. सोचने वाली बात यह है कि घर से लेकर बाहर तक उनको हर जगह शोषण का शिकार होना पड़ता है. छोटे लडके से लेकर अधेड़ उम्र के पुरुष को भी उनका शोषण करने में कोई संकोच नहीं होता, अब ना तो उम्र का लिहाज रह गया हे और संस्कारो कि तो बात छोड़ दीजिये. आज सम्पूर्ण विश्व में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा (बलात्कार ) और अपराध बढते जा रहे है, रुचिका,आरुषी, प्रियदर्शनी मट्टू कांड न जाने कितने उदहारण है. एक सर्वेक्षण के जरिये २०-३० %महिलाएं रोज़ उत्पीड़न का शिकार होती है. पारिवारिक और सामाजिक मर्यादा के कारण कितनी महिला चुप चाप सब कुछ सह लेती है. इसके साथ ही लाज, शर्म और भय के कारण महिलाएं किसी को बताने से भी हिचकिचाती है. सौ में एक महिला में हिम्मत होती भी है तो न्याय में देरी के कारण अपराधी को सजा नहीं मिल पाती है, कई तो संरक्षकों कि बदनामी कि वजह से आपस में ही मामला समझा-भुझाकर या ले- देकर मामले को वहीँ रफा दफा कर दिया जाता है.
यदि किसी महिला के साथ यौन उत्पीड़न और बलात्कार का शिकार होती है. तो उसे अंधकार कि चादर इस तरह घेर लेती, जिससे ता उम्र वह निकल नहीं पाती है. समाज के किसी कोने में उसके लिए सहानुभूति, सम्मान और प्यार तक कि कोई गुंजाईश नहीं रहती. समाज तो दूर घरवाले भी उसे नकारते हें, प्यार के दो बोल के लिए वह तरसती है, कसूर किसी का और सजा कि भोगी नारी बन जाती है. आज हमारा पुलिस तंत्र भी पूर्ण रूप से अपंग हो गया है, कानून कि तो धज्जियां उड़ चुकी है, प्रत्येक विधेयक में महिला आरक्षण का मुद्दा उठाया जाता है की राजनीति में ३३% आरक्षण महिलाओं को मिलना चाहिए, जब तक निति निर्माण में महिलाओं कि अहम् भूमिका नहीं होगी, तब तक महिलाओं को उनके हक़ में कभी कुछ भी नहीं मिलेगा. स्वतंत्रता से लेकर अब तक महिलाओं के यौन शोषण को लेकर अब तक कोई विधेयक नहीं लाया गया. नारी सशक्तिकरण को लेकर प्रतिवर्ष ८ मार्च को विश्व महिला दिवस मनाया जाता है, जहाँ स्त्री आधिकारो की बात की जाती रही है, आय दिन सम्मलेन कराय जाते हैं, पत्र पत्रिकाओं में नारी उद्धार को लेकर न जाने कितने लेख छापे जाते हैं, नारी सशक्तिकरण का झंडा फहराते हुए सालों बीत गए है, पर इससे मुक्ति मिलने का एक रास्ता भी आज तक नज़र नहीं आया.
वर्त्तमान सन्दर्भ में बलात्कार वृद्धि का कारण जानने का प्रयास करे तो बलात्कार कि घटनाओं के पीछे उपभोक्तावादी संस्कृति, संस्कार के साथ-साथ पारिवारिक मनोवृति, साथ ही संचार माध्यमो मैं बढते सेक्स, अश्लील यौन साहित्य, फिल्म विडियो आदि का प्रदर्शन बलात्कार कि घटनाओं को अंजाम दे रहा है. जब हमारा समाज फिल्मो में पुरुष-महिला के अन्तरंग प्रेम संबंधो को पर्दे पर देखता है तब उसी का अनुसरण करने में तथा अपने जीवन में उतरने में उन्हे जरा भी संकोच नहीं होता. अंततः हमें बलात्कार सिर्फ एक स्त्री के विरुद्ध अपराध नहीं बल्कि शसक्त समाज के विरुद्ध अपराध है, साथ ही स्त्री की सम्पूर्ण मनोभावना को नष्ट करने में भी कोई क़सर नहीं छोड़ता. अतः हमें स्त्री आधिकारों के विरुद्ध जागरूक होना चाहिए, साथ ही ऐसा कुकृत्य करने वाले को दंड मिलना चाहिए …………

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