Wednesday 8 June 2011

शिक्षा क्षेत्र में समाज का सहयोग जरुरी

सचमुच यह विडम्बना ही है कि विश्व भर में एक बड़ी आबादी निरक्षर है और उस निरक्षर आबादी का तीसरा हिस्सा भारत में निवास करता है . सिर्फ धन के आभाव के कारण आज एक गरीब व्यक्ति अपने बच्चे को शिक्षित कर पाने में असमर्थ है . अनुशासन में कमी ,अव्यवस्था और बदतर परिस्थितियों का आलम यह है कि ४ में १ अर्थात २५% शिक्षक हमेशा कक्षा में अनुपस्थित रहते हैं . समस्यां केवल यहीं तक ही सीमित नहीं है , आलम यह भी है कि, भारत में जहाँ कक्षाओं का औसत आकर ४० विद्यार्थी प्रति कक्षा है ,जबकि बिहार समेत उत्तर भारत में औसत एक कक्षा में ८३ छात्र \छात्रा तक पहुंचता है .
शिक्षा के प्रति यह उदासीनता ,सिखाने वाले पाठ्यक्रम का न होना और संसाधनों के आभाव ने सरकार को यह सोचने के लिए यह विवश कर दिया कि आम तौर पर शिक्षा और साक्षरता के प्रति नयी समझ की आवश्यकता है . शिक्षा के कार्यक्रम को आगे ले जाने के लिए,सरकार प्रतिवर्ष एक लाख करोड़ रूपए से भी अधिक धन खर्च करती है, उस धन से कितने लोग लाभान्वित हो रहे हैं और कितने प्रतिशत लोग शिक्षा अर्जित कर पा रहे हैं ,यह एक महत्तवपूर्ण सवाल है ?
शिक्षा का उद्देश्य तो यह होना चाहिए, जो बच्चों को परिपक्व बनाने के साथ-साथ एक ऐसा इन्सान बनाना जो कल्पना शील और वैचारिक रूप से स्वतंत्र हो और देश का भावी कर्णधार बन सकें .साथ ही शिक्षा केवल पढना और लिखना नहीं सवालों का जवाब हासिल करने के लिए संघर्ष करना और अपनी बातों को अभिव्यक्त करना भी है . शिक्षा दूसरों से प्रतियोगिता नहीं बल्कि दूसरों का सहयोग करना सिखाती है .शिक्षा वो लिंग ,जाति और संस्कृति की बुराइयों को समाप्त करना सिखाती है .साथ ही न्याय से जूझना सिखाती है ,परन्तु वर्त्तमान स्कूलों का पाठ्यक्रम समाज न ही जागरूक बनाने में और न ही समाज की स्थिती को बदलने में सहायक हो पाया . अतः जरुरत है एक नयी सोच की ,जो शिक्षा की मूलभूत खामियों को जानने में सहायक हो .और साथ ही शिक्षित युवाओं को शिक्षक बनाने की राह में प्रोत्साहित कर सकने में सहायक हो . सिर्फ इतना ही नहीं सरकार की स्कूली पाठ्यक्रम में अधिक गुणवत्ता के साथ शिक्षा की उचित व्यवस्था पर केन्द्रित होना चाहिए .
भारत के अधिकतर राज्यों में शिक्षा के कुल बजट का 95 प्रतिशत शिक्षकों के वेतन पर खर्च होता है , जबकि विद्यालय और अध्ययन सामग्री पर कभी-कभी 1 प्रतिशत से भी कम राशि खर्च हो रही है ….. इसके बारे में भारी विभिन्नता वाले विश्लेषण भी प्रस्तुत हो रहे हैं। हाल में ही ,समूचे भारत में अनिवार्य शिक्षा विधेयक पारित हो गया है,जिसके तहत ६ से १४ साल तक के सभी बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराना संवैधानिक अधिकार बना दिया गया है | इस कानून के लागू होने के बाद अगर किसी बच्चे को शिक्षा का अवसर नहीं मिलता ,तो इसे सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी होगी |निरक्षरता सम्बंधित तथ्यों पर नजर डालें तो ८ राज्य बिहार,उत्तरप्रदेश ,मध्यप्रदेश ,आँध्रप्रदेश ,पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और महाराष्ट्र में से प्रत्येक राज्य में एक करोड़ से भी ज्यादा निरक्षर आबादी रहती है जो देश की कुल आबादी का ६९.७० % है | सरकार का मानना यह भी है कि शिक्षा विधेयक से आने वालें दिनों में साक्षरता प्रतिशत में वृद्धि होगी
अतः परिस्थितयों से निपटने के लिए सरकार की योजनाओं में समाज की भागीदारी आवश्यक है . शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे नेतृत्व की जरुरत है जो मूलभूत खामियों को पहचान कर , नयी सोच और प्रणाली के साथ शिक्षा का उजियारा देश के कोने-कोने तक पहुंचा सके ….

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